वो आँगन है आज भी मुझको याद
तुलसी,घरौंदा... नन्हा सा पौधा
वो छोटी सी साँकल..और कोने का कलसा
हर सुबह थी होली के रंगों सा जलसा
तकती थी दादी राह जो मेरी
कि आयेगा छोटू तो जायेगें मन्दिर
और मंडी में मिलती.. चूरन की गोली
उससे भी मीठी चूरन वाले की बोली
वो डमरू की डुग डुग कहाँ खो गयी है
ना दादी,ना तुलसी .. ना चूरन की गोली
बचपन न जाने ,कहाँ गुम हुआ है...
वो आँगन,घरौंदा..इक पीतल का कलसा
यादों में हैं बस वो नन्हा सा पौधा...
Thursday, February 19, 2009
Wednesday, February 18, 2009
आभास - आकाश पाण्डेय
आकाश का विस्तार कितना गहन है
ये सोच कर आकाश आभास ये पाता है
कि तपती लू के बाद..
बारिश की ठंडी बूदों का अहसास
एक अवर्णित अनुभव बन पाता है...
ये सोच कर आकाश आभास ये पाता है
कि तपती लू के बाद..
बारिश की ठंडी बूदों का अहसास
एक अवर्णित अनुभव बन पाता है...
लक्ष्य भी है
लक्ष्य भी है,बाण भी हैं
भेदना मैं चाहता हूँ
और अपने लक्ष्य की वेदना
को चाहता हूँ
एकलव्य बना खड़ा
द्रोण को तलाशता हूँ
पर अर्जुनों की फ़ौज से
मैं सदा ही हारता हूँ...
- आकाश पाण्डेय
भेदना मैं चाहता हूँ
और अपने लक्ष्य की वेदना
को चाहता हूँ
एकलव्य बना खड़ा
द्रोण को तलाशता हूँ
पर अर्जुनों की फ़ौज से
मैं सदा ही हारता हूँ...
- आकाश पाण्डेय
माँ - आकाश पाण्डेय
दूर बैठा हूँ मैं घर से.
और माँ तुम आती हो याद..
देखा था तुमको इस दिवाली
बरसों के बाद
तुम मुझे करती हो
कितना प्यार और दुलार भी
कि आज फिर दिल चाहता है
काढ़ों मेरे बाल तुम
इक टिफ़िन को डिब्बा हो
रोटी हो अचार हो
जूते के फीते भी केवल
तुमसे ही बधने को तैयार हों
एक आठ आना दो मुझे
टॉफ़ी लेने के लिए
और कहो कि मेरे छोटू
मेले है जाना इतवार को ...
और माँ तुम आती हो याद..
देखा था तुमको इस दिवाली
बरसों के बाद
तुम मुझे करती हो
कितना प्यार और दुलार भी
कि आज फिर दिल चाहता है
काढ़ों मेरे बाल तुम
इक टिफ़िन को डिब्बा हो
रोटी हो अचार हो
जूते के फीते भी केवल
तुमसे ही बधने को तैयार हों
एक आठ आना दो मुझे
टॉफ़ी लेने के लिए
और कहो कि मेरे छोटू
मेले है जाना इतवार को ...
Tuesday, February 17, 2009
ये शहर.. अन्धा शहर - आकाश पाण्डेय
ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है
धूप हो , बरसात हो
हर पहर लाजवाब है
ये शहर.. अन्धा शहर
रस्ते रेगिस्ताँ के चला
बस दो कदम मेरे पास थे
हरियाली का मौसम आते ही
सब अनजाने खास थे
ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है
लबों पर है मिश्रिया यहाँ
और पीछे खंजर हाथ है
सच है सड़कों पर भटकता
झूठ सोने के भाव है
ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है
ज़िन्दा को है छत नहीं
मूरतों को.. गुम्बद ताज है
रोटी की कीमत आसमाँ सी..
आसमाँ रोटी को मोहताज है
ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है
धूप हो , बरसात हो
हर पहर लाजवाब है
इस शहर की क्या बात है
धूप हो , बरसात हो
हर पहर लाजवाब है
ये शहर.. अन्धा शहर
रस्ते रेगिस्ताँ के चला
बस दो कदम मेरे पास थे
हरियाली का मौसम आते ही
सब अनजाने खास थे
ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है
लबों पर है मिश्रिया यहाँ
और पीछे खंजर हाथ है
सच है सड़कों पर भटकता
झूठ सोने के भाव है
ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है
ज़िन्दा को है छत नहीं
मूरतों को.. गुम्बद ताज है
रोटी की कीमत आसमाँ सी..
आसमाँ रोटी को मोहताज है
ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है
धूप हो , बरसात हो
हर पहर लाजवाब है
रौशनी की पतंग - आकाश पाण्डेय
आज उड़ाओ
रौशनी की पतंग
ऊचें आसमान में
सजा दो
रिश्तों की रंगोली
हर दिलो जान में
ख्वाब भी
खेलेगे आज
खूब मेहताब से
जल उठेगें
दिये दिल के
रौशन आफ़ताब से
रौशनी की पतंग
ऊचें आसमान में
सजा दो
रिश्तों की रंगोली
हर दिलो जान में
ख्वाब भी
खेलेगे आज
खूब मेहताब से
जल उठेगें
दिये दिल के
रौशन आफ़ताब से
फ़लक पे खेले हम - आकाश पाण्डेय
हाथ मिला के, कदम जमा के
हम तो बढ़ते जायेगें
कल को हमने जीता था
फिर कल को जीत के लायेगें
फ़लक पे खेले हम – 2
एक हाथ में धरती थामें
चाँद छीन के लायेगें
साथ-साथ जब सब मिल जायें
अनहोनी कर जायेगें
फ़लक पे खेले हम – 2
घर बारों को नयी ज़िन्दगी
से रौशन कर जायेगें
सब खुश हो कर साथ रहेगें
दुनिया नयी बनायेगें
फ़लक पे खेले हम – 2
हाथ मिला के, कदम जमा के
हम तो बढ़ते जायेगें
कल को हमने जीता था
फिर कल को जीत के लायेगें
फ़लक पे खेले हम – 2
फ़लक पे खेले हम – 2
हम तो बढ़ते जायेगें
कल को हमने जीता था
फिर कल को जीत के लायेगें
फ़लक पे खेले हम – 2
एक हाथ में धरती थामें
चाँद छीन के लायेगें
साथ-साथ जब सब मिल जायें
अनहोनी कर जायेगें
फ़लक पे खेले हम – 2
घर बारों को नयी ज़िन्दगी
से रौशन कर जायेगें
सब खुश हो कर साथ रहेगें
दुनिया नयी बनायेगें
फ़लक पे खेले हम – 2
हाथ मिला के, कदम जमा के
हम तो बढ़ते जायेगें
कल को हमने जीता था
फिर कल को जीत के लायेगें
फ़लक पे खेले हम – 2
फ़लक पे खेले हम – 2
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