Wednesday, August 26, 2009

मस्त कलन्दर...

मन से है जो मस्त कलन्दर...
रखे दुनिया है जेब के अन्दर....
दिल दरिया है लाइफ समन्दर....
खुशियां है आसान............

एक सफ़दर चाहिए,

एक बिस्मिल , एक गांधी , एक सफ़दर चाहिए,

अब कलम की मार से ताज हिलना चाहिए.

छुटपन का कन्ना

चलो इक बार दोबारा यादो के ...

आंगन में बचपन उगाये ...

बांध के पतंग में छुटपन का कन्ना , ...

खुशियों को छुड़ईया दे उड़ाये


Tuesday, August 25, 2009

आदाब नखलऊ .

सुना हैं अब नखलऊ में ...

नेता कम और हाथी ज़्यादा हो गये है...

लोग खुश है क्योकि हाथी भी नेता से कम ही खाते है

...................... .. आदाब नखलऊ ..

बचपन परोसो...

ज़िन्दगी की थाली में बचपन परोसो........

जिसे छोड़ आये थे पीछे हम कोसों..

स्याह कागज़

स्याह कागज़ हो गये है .. और कलम का खून है पड़ा सफेद ...

असली और नकली आखर का बड़ा कठिन है भेद


मुखौटे

हर ओर मुखौटे है ...

जनता ने लगा रखे हैं बीमारी से बचने के लिए...

और नेताओ ने लगा रखे है

ज़िम्मेदारियों से बचने के लिए


होशियार रहो ..

खबरवालों से खबरदार रहो ...

इन चालाको से होशियार रहो ....

ये संवेदना नहीं,सनसनी बेचते है ...

बेमतलब दिनभर रेकतें हैं....

कभी फुरसत कभी मसरूफियत

कभी फुरसत में मसरूफियत का इंतज़ार ....

तो कभी मसरूफियत में फुरसत के लिए बेकरार..

लिख दो अपना नाम

जब उड़ ही आये हो समन्दर की हवाओ में..........

तो लिख ही दो अपना नाम अब फिज़ाओ में .....

ज़मी के टुकड़े

ज़मी के टुकड़े करना.....
जैसे करना आंचल को तार तार.....
माँ के दुखड़े को करना जैसे...
ढेरों असुअन से धार धार ....
सब भूल के ममता,प्यार इबादत..
करना रिश्तों पर वार वार...
गले लगो अब,मिल के रो लो...
खूब जगाओ प्यार प्यार..