Thursday, May 27, 2010

थाम ले उंगली मेरी

थाम ले उंगली मेरी , और ले चले बचपन में कोई .
धुन दे दोबारा मेरी यादों की पुरानी रूई...
पगड्ण्डी पर मुझे , मिल जाए फिर से कुछ गुबरैले,
और दादी की क्यारी में मिल जाए फिर वो नन्ही छुई- मुई.
डमरू सुन के भागे सब , कि आया फिर से मदारी ,
और करें मेले में जाके... हाथी की फिर से सवारी .

Tuesday, May 11, 2010

ब्रम्हाण्ड

आकाश का आरम्भ और आधार मैं हूं खोजता ,
अविराम , अनंत , अद्भुत ,अतुल्य के विषय में सोचता.
कब था जन्मा ये गगन और कहाँ है इसका अंत ,
और न जाने कितने होगें इस अम्बर में सप्त संत.

Friday, May 7, 2010

गाएगें कोरस उमर भर .

एक परदा फिर खुलेगा, निकेलगा सूत्रधार ...
और कलम की नोक से उगेगा , दोबारा एक नया किरदार...
शब्द पैने तीर से छूटेगे फिर , भेदने को सच - खबर ....
और बन तलवार हम , गाएगें कोरस उमर भर ....
(सभी रंगकर्मीयों को समर्पित)

Thursday, May 6, 2010

हिन्दी लोकोक्तियाँ एवं मुहावरे

सांच को आंच नहीं

सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप
एक सुनार की सौ लोहार की
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे
नाच न आये आंगन टेढ़ा
न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी
लकीर का फकीर
चैन की नीद सोना ।
आये थे हरि भजन को , ओटन लगे कपास ।
जब भगवान देता है तो छप्पर फ़ाड के देता है ।
जो गरजते हैं वो बरसते नहीं ।
अपने मुँह मिया मिट्ठू बनना ।
सौ सोनार की, एक लोहार की ।
अधजल गगरी, छलकत जाय ।
खरबूजे को देखकर तरबूजा रंग बदलता है ।
चोर-चोर मौसेरे भाई ।
एक तो चोरी , दूसरे सीनाजोरी ?
सैंया भये कोतवाल , अब डर काहे का ।
नौ नगद न तेरह उधार ।
सावन के अंधे को हरा ही हरा दीखता है ।
पूत कुपूत त का धन संचय , पूत सुपूत त का धन संचय ।
मियाँ की दौड मसजिद तक ।
अंधा क्या चाहे, दो आँखें ।
खरबूजे को देखकर तरबूजा रंग बदलता है ।
जैसी करनी , वैसी भरनी ।
जैसा राजा वैसी प्रजा ( यथा राजा तथा प्रजा )
नेकी कर, दरिया मे डाल ।
दाल में काला होना ।
जैसे उधौ, वैसे माधव ।
बहती गंगा में हाथ धोना ।
उलटी गंगा बहाना ।
चलती का नाम गाडी ।
चोरी का धन मोरी में जाता है , सूम का धन सैतान खाता है ।
एक-एक ग्यारह होते हैं ।
नौ-दो-ग्यारह होना ।
तीन-पाँच करना ।
खरबूजे को देखकर तरबूजा रंग बदलता है ।
जैसी करनी , वैसी भरनी ।
जैसा राजा वैसी प्रजा ( यथा राजा तथा प्रजा )
नेकी कर दरिया मे डाल ।
दाल में काला होना ।
घी के दिये जलाना ।
जले पर नमक छिडकना ।
हवा से बातें करना ।
पानी-पानी होना ।
उल्टे बाँस बरेली को ।
मियाँ की जूती मिया के ही सिर पर ।
आम के आम , गुठलियों के दाम ।
आगे कुआँ , पीछे खाई ।
रमता जोगी, बहता पानी ।



ऊँट के मुँह मे जीरा ।
अब पछिताये क्या भया , जब चिडिया चुग गयी खेत ।
साँप मरे, ना लाठी टूटे ।
साँप को दूध पिलाना ।
आस्तीन का साँप होना ।
दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते ।
कुत्ते की मौत मरना ।
धोबी का कुता , न घर का न घाट का ।
चाम की थैली , कुक्कुर रखवार ।
कुत्ते की पूँछ कभी सीधी नहीं होती ।
घर की मुर्गी दाल बराबर |
कूप मण्डूक
घोडे बेचकर सोना ।
हाथी के दाँत , खाने के और दिखाने के और ।
घडियाली आँसू बहाना ।
भैंस के आगे बीन बजाना ।
भेंड चाल चलना ।
तेली का बैल होना ।
सोने की चिडिया ।
दूध से जली बिल्ली मट्ठा भी फूँक-फूँक कर पीती है ।
सौ-सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली ।
तूती बोलना ।
जल में रहकर मगर से बैर करना ।
बिल्ली के श्रापने से छींका नही टूट्ता ।
तोते की तरह रटना ।
मुर्गा नहीं रहेगा तो क्या सबेरा नही होगा ?
बिच्छू का मन्तर पता नहीं और साँप के बिल मे हाँथ डाले ।
अक्ल के घोडे दौडाना ।
जंगल में नाचा मोर , किसने देखा ?
बंदर घुडकी देना ।
खोदा पहाड, निकली चुहिया ।
ऊँट के मुह में जीरा ।
हाथी चला जाता है, कुत्ते भौंकते रहते है ।
अपना उल्लू सीधा करना ।
कान पर जूँ रेंगना ।
कलेजे पर साँप लोटना ।



अक्ल के अंधे ।
दाहिना हाँथ होना ।
मुह की खाना ।
मुह में पानी आना ।
मुह फ़ेरना ।
मुह पर कालिख पोतना ।
हाथ-पाँव फ़ूलना ।
पेट फूलना ।
थूककर चाटना ।
तलवे चाटना ।
एडी चोटी का जोर लगाना ।
लार टपकना ।
हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या |
मुख में राम, बगल में छुरी |
आँख का अंधा, नाम नयनसुख |
अंधा क्या चाहे, दो आँखें ।
आँख में धूल झोंकना ।
आँख की किरकिरी होना ।
आँख की किरकिरी होना ।
आँख दिखाना ।
नाक कटवाना ।
पीठ दिखाना ।
पीठ मे छुरा भोंकना ।
छाती चौडी होना ।
सिर मुडाते ही ओले पडना ।
सिर पर पैर रखकर भागना ।
सर कुचलना ।
सिर ऊँचा करना ।
सर हथेली पर लेकर काम करना ।
हाथ बटाना ।
उंगलियों पर गिनना ।
लात मारना ।
कौडी के मोल बेचना ।
घास छीलना ।
जूते घिसना ।
का वर्षा जब कृषि सुखानी ।
सूरदास की काली कमरिया, चढै न दूजा रंग ।
आग लगने पर कुंआ खोदना ।
आग मे घी डालना ।
नौ नगद न तेरह उधार ।
उगते सूरज को सब पूजते हैं ।
डूबते को तिनके का सहारा ।

महंगा होने वाला है

लोकतंत्र में निकली झांकी . फिर देखो मंहगाई की ...

लाल किले पर गूंज रही है , फिर झूठी शहनाई सी ....

दाल है दौलत सोने सी और दूध में कुछ तो काला है .....

और सुना है पेट्रोल भी फिर से , महंगा होने वाला है .

कुछ लकीरे तकदीर की.

रोज़ लिखता हूं ,मिटाता कुछ लकीरे तकदीर की....

है कहानी और परीक्षा , इस वतन के धीर की ....

मुल्क को मुश्किल से मिलती , माटी ऐसी मादरी

और धरा पर है नही , हिन्द से धरती खरी ....

शाम सरगम , रात रिमझिम , भोर भावों से भरी,,

हर रितु में भूमि सारी , रह्ती खुशियों से हरी .

लफ्ज़ो की लड़ाई....

लड़ रहे है मुल्क में सब लफ्ज़ो की लड़ाई....

चाहिए क्या हिन्द को वो बात सबने है भुलाई ...

भाषा तो बस भावो की किश्ती है , ये जान लो ..

डोर रिश्तों की असल है एकता ,पहचान लो.

जाति,धर्म,क्षेत्र,भाषा

अंग्रेज़ो की नीति थी फूट डालों राज करो....

और आज की राजनीति है फूट डालो राज करो....

मंहगाई,बेरोज़गारी,भूख,अशिक्षा का हल नहीं है

तो फिर वही पुराना जाति,धर्म,क्षेत्र,भाषा की लड़ाई....

तो भक्त जनो प्रेम से बोलो --- फिर मिले सुर मेरा तुम्हारा..

आदम जगा दो यारों

आज ढ़लते सूरज की किरण से...

एक् मशाल जला लो यारो ...

जुबा पर लगी ढ़ाल को फेंक....

कलम मयान से निकालो यारो...

चढ़ा के गांडीव पर शब्दो की प्रत्यंचा...

दो टंकार और हिन्द गुंजा दो यारो...

है समय अब शायरी के शंखनाद का ,....

लेके बागडोर वतन की ,

आदम जगा दो यारों..

किस्सों की किश्ती

किस्सों की किश्ती, ले चलो सफर पर ..

चांद निकला हो जहां , मामा फिर बन कर ...

हीरमन तोता खाकर के मिर्ची ,..

बोले मीठी बतिया ,कानों में मधुर सी ...

बचपन हो सबमें , हो भोलापन भी ...

ना हो कोई भाषा,न सीमा वतन की.


February 5 at 12:28pm .

कोशिश जारी है ,

कोशिश जारी है , लफ़्ज़ो को...... दिल से लब पर लाने की......

बचपन के कुछ लम्हों को .... अब फिर से दोहराने की......

February 8 at 10:23am

आज शंकर ने देखा(शिवरात्रि पर)

आज शंकर ने देखा, इंसा को विष फैलाते हिन्द में....

नीलकंठ सोचते है कि , क्यों है आदम ऐसा ...

जिसकी खातिर पिया था उन्होने प्याला कसैला....

वो खुद ही बना है, अपनी आस्तीन का संपोला..

February 12 at 10:14pm

कुछ अफ़साने..

गीत,तराने...कुछ अफ़साने.., उड़ते तितली से,यहाँ वहाँ...

मेरा मन बच्चा सा देखो... दौड़े पीछे..कहाँ कहाँ.

देखो होली आई है...

नेता जी की कृपा से ,

सबने फीकी गुझिया खाई है..

देखो होली आई है...

वेटिंग में लटके ममता की,

ट्रेनों की दुहाई है...

देखो होली आई है.....

पीला चेहरा भूख से सबका,

खादी ने काली कमाई है...

देखो होली आई है...

खेल रहे सब खून के रंग से,

बेची शर्म -हयाई है...

देखो होली आई है.

बेखबर आराम से.

बेखबर आराम से.. चलता चला जा रहा हूं ..

मौसम-ए-मौजा की खिल्ली .. बस यूं ही उड़ा रहा हूं.

दोस्ती पर *शर्ते लागू..

बाजार से सेल में नींद 50% ऑफ... खरीद लो...

और ममता ... और दुलार केवल स्टॉक रहने तक सीमित..

दोस्ती पर *शर्ते लागू..

और ईमानदारी दो कौड़ी प्रति मिनट की दर पर ..

चंदा कथाओं से

एक अफ़साना लहू से टपका...

निकला दर्द सी आहो से ..

एक अजब सा गाना आया,

झूम नशीली राहो से ..

एक आंसू फिर से मुसकाया ,

बचपन की मस्त हवाओं से.....

एक सजीला मामा इठलाया,

बन के चंदा कथाओं से.

सुहानी पीली छतरी के साथ

आसमान में है नज़र ..

और तलवों के नीचे गीली रेत....

लहरें की तरह ज़िंदगी आती हैं ..

और लौट जाती हैं...

बीते लम्हे ... और आने वाला कल,

बीच में आकाश पूरब से आते

यादों के मन्द मन्द झोकों के साथ ,

फिर खड़ा है उन हवाओं के,लहरों के,फुहारों के इंतज़ार में..

.....सुहानी पीली छतरी के साथ.


नहीं जोड़ सकते

कल मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिला,

जो नया-नया बुद्ध धर्म को मानने वाला बना था..

माला जपता था और मंत्र पढ़ता था......

फिर मुझे याद आया कि वो मछली खाता है, और मुर्गे भी...

फिर मुझे याद आया कि बुद्ध ने आंगुलीमाल से क्या कहा था....

तुम उस पत्ते को मत तोड़ो ,

जिसको तुम शाखा से दुबारा नहीं जोड़ सकते ..

यादों की छ्तरी

बारिशे कई आयीं.. और चली गयी...

झोके भी कुछ पतझड़ के चितेरे बन निकल गये,...

लेकिन अभी भी वो मौसम बाकी है

जिसमें यादों की छ्तरी हो.

और हो बचपन की फुहार...

कुछ बस के टिकट हो

और कुछ बीते त्यौहार...

Wednesday, May 5, 2010

आज तेरे इंसान की हालत

आज एसबीआई क्रेडिट कॉर्ड का एक स्पेशल ऑफर वाउचर मेरे पास आया है "स्पोर्ट शूज़ इंस्टालमेंट में" इस पर पुराने गीत की लाइनें फिर ताज़ा हो गई - "आज तेरे इंसान की हालत क्या हो गई भगवान.. ...

इक अफ़साना बेकरार...

भीड़ में तन्हा चला था, इक अफ़साना बेकरार...

मंजिले मिलने से पहले , भीड़ में वो खो गया..

सुना है शहर में चाँद कई निकल आए हैं

सुना है शहर में चाँद कई निकल आए हैं ,
जो सूरज की रोशनी से दमकते है....
उनमें खुद का कुछ भी नहीं है
फिर भी वो खुद पर कविताएं लिखवाते हैं,
कसीदे गढ़वाते है....
लेकिन जब सूरज निकलता है
वो सब उल्लू , सांपो और सियारों के साथ ,
तमस में छुप जाते हैं..