नवाबगंज थाने के पास थी
कासिम कि वो दुकान
जिसमें अण्डो के ऊपर
डोरी पर मैगज़ीने टंगी रहती थी
लोगों के लिए वो किताबे थी
लेकिन मेरे लिए हवा में
टंगी रग बिरगी कहानीयां
हर कहानी अलग थी ,
एक ख्वाब सी
एक ज़िन्दगी
लोग न जाने क्यों उसे
अण्डे वाले की दुकान कहते थे
मुझे तो वो केवल
कहानी की दुकान ही लगती थी
और आज जब दूर से पलट के देखता हू
तो पता लगता है कि
वो कहानी की दुकान नहीं थी
खुद एक कहानी थी,
लोग भले ही वहाँ से
कहानी नहीं ले जा सके
केवल अण्डे लेकर चले गए
तब भी वो कहानी के किरदार बन गए
Saturday, June 26, 2010
अज़ान
नवाब गंज की छोटी मस्जिद के बताशे ही लाना ,
ठाकुर जी के प्रसाद के लिए. दादी ने छोटू से कहा,
उन्ही में असली मिठास होती है,
नसीम बताशे वाला हर जन्माष्टमी को
खास दुकान लगाता है
जिनके रंग , झाकी मे सजने वाले खिलौनो
से भी ज़्यादा चटक होते है .
देखो दोपहर की अज़ान हो गयी है ,
12 बजने को आए ,
ठाकुर जी को नहलाने का वक्त हो गया है.
बरसों बाद , सुना कहीं कोई मस्जिद टूट गई है
छोटू लौट के आया , कुछ यादों के बताशे ले कर
लेकिन उन बताशो का भोग लगाने वाला कोई नहीं था
ना दादी, ना ठाकुर जी और न ही बचपन
ठाकुर जी के प्रसाद के लिए. दादी ने छोटू से कहा,
उन्ही में असली मिठास होती है,
नसीम बताशे वाला हर जन्माष्टमी को
खास दुकान लगाता है
जिनके रंग , झाकी मे सजने वाले खिलौनो
से भी ज़्यादा चटक होते है .
देखो दोपहर की अज़ान हो गयी है ,
12 बजने को आए ,
ठाकुर जी को नहलाने का वक्त हो गया है.
बरसों बाद , सुना कहीं कोई मस्जिद टूट गई है
छोटू लौट के आया , कुछ यादों के बताशे ले कर
लेकिन उन बताशो का भोग लगाने वाला कोई नहीं था
ना दादी, ना ठाकुर जी और न ही बचपन
Thursday, June 17, 2010
रंगों की बात
रंगों की बात,
कुछ नये जज़्बात.
छोटी सी बचपन की छीटें,
और सपनो की पतंगे.
सात रंगो का धनुष ,
और फूलों की तरंगें .
कुछ उत्सव के अहसास,
यादों के पल खास.....
Tuesday, June 15, 2010
पहली बारिश
बून्दे खिलौने , बारिश बिछौने .
बचपन फुहारे.... बादल है सपने ..
बिजली उमंगे , ओले तरंगे ....
आओ उड़ाए , खुशियां पतंगे ...
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