एक केतली थी ,
जो भाप से अपनी
सूरज से पहले सुबह उगलती थी..
मेहमान आने पे ही वो
अपने कमरे से निकलती थी..
उसकी नक्काशी के
नक्शे अजब से थे...
अफसाने और चर्चे
उसके गजब के थे ..
जापान वाले चाचा उसे इटली से लाए थे..
हम बचपन में छोटे थे ,
पहुंच ना थी वहाँ तक की..
बस एक बार महमानखाने में
उसे ले जा पाए थे..
फिर फैशन चला गया उसका ..
जलवे खो गए..
जापान वाले चाचा के बच्चो ने
उन्हे निकाल दिया घर से..
वो आए थे ..
उन्हे माँ ने आज चाय दी है..
स्टडी टेबल पे उन्होने टूटी केतली को देखा..
मेरी बेटी ने उसका पेन स्टैंड बना लिया है..
चाचा देख के बोले
ये केतली गजब की थी..
रोज़ सबेरे सूरज़ से पहले सुबह उगलती थी...