Monday, December 17, 2012

कम ऊचाई की वजह सें

सर्दियों के इस गुलाबी मौसम में 
इतराती हरसिंगार की खुशबू ने 
आज यादों को फिर से महका दिया.. 
बचपन में मेरी ऊचाई बेले के पौधे 
से कम हुआ करती थी 
जो गर्मीयों में अपनी महक से 
आंगन में कूदता घूमता था.. 
पर इस कम ऊचाई की वजह सें 
मैं आसमान से बरसते और नाचते सपनों जैसे 
हरसिंगार के फूलों को देख पता था , 
जिन्हे ज़्यादा ऊचाई वाले 
कभी भी नही देख पाए थे..

बागी स्याही कर दो मेरी

बागी स्याही कर दो मेरी
मारो गोली भेजों में... 
देश बिक रहा क्यों मेरे यारों
बाबूओं की मेजो में.
बना के बॉली बॉल देश को 
खेल रहे है हिप हिप हुर्रे 
नोट छप रहे टकसालों में
अखबार टिशू पेपर के खर्रे... 
पेन तलवार बनानी होगी.. 
लहरानी होगी , ध्वजा पताका 
लफ्ज़ों के बम बना के कर दों
मेरे बिस्मिल भगत धमाका..
बागी स्याही कर दो मेरी
मारो गोली भेजों में...
देश बिक रहा क्यों मेरे यारों
बाबूओं की मेजो में.

वो टेली फोन की डायरी

एक टेली फोन की डायरी थी.. 
जिसमें लिख दिए जाते थे.. 
सारे नम्बर , 
सारी सालगिरह की तारीखें
धोबी – दूध वाले का हिसाब.. 
वो पढ़ी नही जाती थी.. 
माँ को सब ज़ुबानी याद रहता था. 
आज स्टडी टेबल पे निकाला है
उसको पहली बार... 
माँ के चले जाने के बाद...