Sunday, January 27, 2013

एड़ीयाँ..


नन्ही एड़ीयों से 
दरार भरी एड़ीयों तक.... 
कूदती एड़ीयों से
 रगड़ती एड़ीयों तक... 
ये दुनियां चोटीयों से नहीं
एड़ीयों के ज़ोर से चलती है..
कोख से निकलते ही.. 
पगली चलने को मचलती है..

वो एड़ीयाँ जिन्होंने आलते से
लाल किया था देहरी को , चौखट को... 
वो एड़ीयाँ.. जो छोड़ गई अकेला सूना.. 
आंगन की आहट को..

वो एड़ीयाँ जिन पर
नन्ही एड़ीयों ने
एड़ीयाँ टिकाकर...
अड़ियल दुनिया को देखा.
इस टेढ़ी सी पगडंडी पे..
बचपन को सेका.. 

एक एड़ी झुर्रीयो वाली 
कहानीयो से भरी
और एक एड़ी होली के
फागों से हरी... 

एड़ी पे एड़ी.. 
कुछ आड़ी कुछ बेड़ी.. 
कुछ लगड़ाती कुछ तेढ़ी.. 
कुछ सच्ची. कुछ हेरा फेरी.. 
एक नन्ही साइकिल पे.. 
एक बड़ी सी अजमेरी.. 

एड़ीयाँ.. 
एक चांद पर पहुंची..
और एक दलदल में अटकी.. 
एक यूवा जोशीली.. 
तूफानों मे भटकी... 
नन्ही एड़ीयों से 
दरार भरी एड़ीयों तक.... 

कूदती एड़ीयों से 
रगड़ती एड़ीयों तक... 
ये दुनिया चोटीयो से नहीं 
एड़ीयों के ज़ोर से चलती है.. 
कोख से निकलते ही.. 
पगली चलने को मचलती है..

आओ थोड़ी धूप खरीदें..

आओ थोड़ी धूप खरीदें.. 
कुछ बचपन , उम्मीद खरीदें.. 
बेच दे सारे गम , तन्हाई,
कुछ लोरी संगीत खरीदें.. 

एक मुट्ठी पेंसिल के छिलके. 
दो चुटकी मुस्कान खरीदें , 
सेल लगाएं भोलेपन की.. 
ढाई आखर प्रीत खरीदें.. 

दो कौड़ी की अकड़ बेच हम..

लकड़ का लट्टू और सीप खरीदें..
रोज़ लुटाएं मीठी बतिया..
जीत हार के , मीत खरीदें..

आओ थोड़ी धूप खरीदें..
कुछ बचपन , उम्मीद खरीदें..