Saturday, October 19, 2013

अब


अब वो वतन के ख्वाब नही देखता
ना खौलता है खून में  इंकलाब
ना देता है जुल्म को कोई जवाब
हर ओर बिछे है बाज़ारो के ख्वाब
ब्रांडो के स्टीकर चिपके है लबों पें  
चमकते बोर्डो से छुपा है आफताब
अब वो वतन के ख्वाब नही देखता
ना खौलता है खून मे इंकलाब

- आकाश पान्डेय , 19 अक्टूबर 2013 

Thursday, October 17, 2013

सब जान के भी कुछ ना कहना

सहना , चुप रहना,
सब जान के भी कुछ ना कहना 
ईएमआई , दहेज , पेंशन ,मिडल क्लास की बेड़ी 
और चार कन्धो का इंतज़ार करती बासं की सीढ़ी 
हम कैसे कुछ कहे ? 
हमारी नियती है कि हम सहें. 
वो नोट , वोट और दिल पे चोट का धंधा है.. 
हमें तो कुओं में  है रहना , सहना और चुप रहना,
सब जान के भी कुछ ना कहना 

- आकाश पाण्डेय , अक्टूबर 2013





Wednesday, October 16, 2013

थाम के वक्त को

आओ थोड़ा थाम के वक्त को
जाती इन बूंदों का लुफ्त उठाएं
आओ थोड़ी देर छोड़ के दुनियादारी
क्यारी में नन्ही कॉमिके उगाएं .
आओ रेल सी ज़िंदगी से उतर के
घर के पालने में लोरी सुन आएं
आओ फेक के ये लोहे के सिक्के
मोती से आसूं कहीं चुन के आएं
आओ इन कुर्सीओं को हटा के किनारे
छोटी सी घासों का बिछौना बनाएं
आओ थोड़ा थाम के वक्त को
जाती इन बूंदों का लुफ्त उठाएं


-    आकाश पाण्डेय – 16 अक्टूबर मुम्बई