काट के जंगल बनाया है शहर हमने अब बोतलों में यहाँ जंगल को तरसते हैं सुखा के पानी हम बने आका से फिरते है सब बोतलों में चुल्लू बना के डूबते है रोज़ - आकाश पाण्डेय 8 मई 2016
बेलफ्ज़ हो गए हम उस शाम को , अब तरसेगे हर शाम उस नाम को । वो रास्ते तो बेफ़िक्र से लगते थे हमे वो अँधेरे से लगते है मुझ गुमनाम को।