बचपन में आँगन का अँधेरा भी
सौधा सौधा सा था ।
वो खुशनुमा सा था ,
उसमें थी , कहानियाँ ।
मिट्टी के तेल की कुप्पी से आती
लौ से निकला काजल ।
जुगनू , बारिश की आवाज़ ,
और सुबह के सूरज की उम्मीद ।
ये अँधेरा बड़ा अजनबी सा लगता है ,
बहुत रौशनी है इसमें ।
शायद मोतियाबिंद में माँ को
ऐसा ही लगता होगा ।
बचपन में आँगन का अँधेरा भी
सौधा सौधा सा था ।
- आकाश पांडेय , मुम्बई २० अगस्त , २०१६
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