आओ कुछ लफ्ज़ बिखेरे. ले ले जज़्बातों के फेरे.. सर्दी में खटिया पे सुखाए या फिर आचल में काढ़े उकेरे .. इन्हे कैनवास पे सजाए चितेरे कुछ रेशमी , कुछ कपासी , कुछ तेरे कुछ मेरे .. आओ कुछ लफ्ज़ बिखेरे. ले ले जज़्बातों के फेरे..
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