रक्त ही रक्त ..शीश विभक्त शिशुओ के धड़ अलग कपाल लिए आसक्त .. मुख सुर्ख , आखे अंधी ममता छत विक्षत.. रक्त ही रक्त .. शीश विभक्त ।
वो एहसान भूल के गिन रहे है फब्तियां.. दोस्ती की कब्र पे जड़ रहे है तख्तियाँ