Saturday, December 14, 2013

रज़ाईया


सकीना आज बार बार छोटे शीबू को
आटे की बोरी उढ़ा रही थी..
लगता बाहर कोहरे ने भी
ईंसानियत को ढ़क लिया है..
जिन्हे दंगा ना मार पाया
आज उन्हे जाड़ा मार देगा
पता है उस छोटे बच्चे की ठंड से
मौत की सरकार जांच कर रही है
शीबू ने पूछा – माँ क्या जांच के बाद
हमें रज़ाईयां मिल जाएगी.. ??
मां बोली ना बेटा चुनाव तो गर्मीयों में है.
रज़ाईया कैसी??

-    -    आकाश पाण्डेय , रविवार, 15 दिसम्बर 2013

Tuesday, December 3, 2013

मिठास

बाकें के खेत में गन्ने की फसल 
खरीदार के इंतज़ार में सूख रही है.. 
ब्याज पे पैसा लिया था.. 
बेटा मुम्बई में मजूरी कर रहा है.. 
उधार चुकाने के लिए.. 
अब तो चाय भी फीकी पीता है. 
कहता है.. हमारे यहाँ गन्ना तैय्यार है.. 
फिर ना जाने क्यों इस शहर में 
मिठास नहीं पहुच रही है ?? 
- आकाश पाण्डेय 3/12/2013

Saturday, October 19, 2013

अब


अब वो वतन के ख्वाब नही देखता
ना खौलता है खून में  इंकलाब
ना देता है जुल्म को कोई जवाब
हर ओर बिछे है बाज़ारो के ख्वाब
ब्रांडो के स्टीकर चिपके है लबों पें  
चमकते बोर्डो से छुपा है आफताब
अब वो वतन के ख्वाब नही देखता
ना खौलता है खून मे इंकलाब

- आकाश पान्डेय , 19 अक्टूबर 2013 

Thursday, October 17, 2013

सब जान के भी कुछ ना कहना

सहना , चुप रहना,
सब जान के भी कुछ ना कहना 
ईएमआई , दहेज , पेंशन ,मिडल क्लास की बेड़ी 
और चार कन्धो का इंतज़ार करती बासं की सीढ़ी 
हम कैसे कुछ कहे ? 
हमारी नियती है कि हम सहें. 
वो नोट , वोट और दिल पे चोट का धंधा है.. 
हमें तो कुओं में  है रहना , सहना और चुप रहना,
सब जान के भी कुछ ना कहना 

- आकाश पाण्डेय , अक्टूबर 2013





Wednesday, October 16, 2013

थाम के वक्त को

आओ थोड़ा थाम के वक्त को
जाती इन बूंदों का लुफ्त उठाएं
आओ थोड़ी देर छोड़ के दुनियादारी
क्यारी में नन्ही कॉमिके उगाएं .
आओ रेल सी ज़िंदगी से उतर के
घर के पालने में लोरी सुन आएं
आओ फेक के ये लोहे के सिक्के
मोती से आसूं कहीं चुन के आएं
आओ इन कुर्सीओं को हटा के किनारे
छोटी सी घासों का बिछौना बनाएं
आओ थोड़ा थाम के वक्त को
जाती इन बूंदों का लुफ्त उठाएं


-    आकाश पाण्डेय – 16 अक्टूबर मुम्बई 

Monday, August 12, 2013

मेरा मौला

कान्हा मेरा मौला तू है , बना दे बिगड़े काज़

रोज़ जपू मैं माला ले के नाम की तेरी नमाज़.

Wednesday, July 31, 2013

भगवान का घर

राधा बोली , माँ सुना है वो लोग आधुनिक तरीके से मंदिर को बना रहे है..
मां बोली - हाँ बेटी वो चाहते है कि भगवान का घर जल्दी से उन्हे मिल जाए..
राधा ने पूछा – मां वो हमारा घर भी बनाएगे आधुनिक ढंग से ??
मां बोली – ना बेटी इस देश में मुरत को घर मिलता है , वोट की बट्न

दबाने वाले अंगूठे को नहीं.. 

Tuesday, June 25, 2013

तारीखें याद रखने की आदतें बेकार

तारीखें याद रखने की आदतें बेकार
तारीखें याद रखेगी अब तुझको मेरे यार..
गर तू निशान कर देगा भगत सा नाम को..
हो खुद लहूलुहान , उठा दे वतन की शान को..
कर दे कलम गिद्दों के सर, कर दे एक वार..
लफ्ज़ो की शमशीर की पैनी कर के तीखी धार..
ना करना तू अब लिहाज़ सफेद पोशगी का..
बस सुनना तू अपनी भारती की दर्दीली चित्कार...
तारीखें याद रखने की आदतें बेकार
तारीखें याद रखेगी अब तुझको मेरे यार..

-  आकाश पांडेय 31 दिसम्बर 2012 , मुम्बई

हीरो

पहाड़ में फंसी राधा ने मां से पूछा - अम्मा रेडियो पे सुना ईंडिया
जीत गई ,जो खेल रहे थे उन्हे एक करोड़ रुपिया मिला , 

मां बोली ‌हां बेटी सरकार कहती है वो देश के लिए खेल रहे थे..इसलिए .

राधा आसमान में हैलीकॉप्टर से लटकते जवान को देख के बोली.
- अम्मा क्या इन्हे भी मिलेगा एक करोड़ ?

मां बोली -ना बेटा हमारे यहां बल्ले से खेलने वाले को ईनाम मिलता है
जान से खेलने वाले को नहीं..वो खिलाड़ी उनके लिए असली हीरो है .

राधा बोली - असली हीरो -जैसे सारुख -सलमान..??

दौरा

राधा आज भी आसमान को ताक रही थी ,
कि शायद कोई हैलीकॉप्टर से आएगा और उसे ले जाएगा 
मां बोली बेटा ये लेने नहीं आए , ये तो दौरे पे आये हैं... 
राधा बोली – दौरा ?? जैसे वो बूढे बाबा को पड़ा था 
दिल का दौरा , जब उसकी औरत पानी में बह गई थी... 
मां बोली -नहीं बिटिया , इनको तो गद्दी के लालच का दौरा पड़ा है... 
दिल का दौरा तो दिल वालो को पड़ता है.. 
अम्मा देखो एक और आया इसपे तो हाथी बना है... 
और राधा फिर से एक नए हैलीकॉप्टर के पीछे भाग गई..

Wednesday, June 19, 2013

हैलो कोई है ??

साहब सैलाब का आसमानी जायजा ले रहे थे , 
बोले बहुत नुकसान हो गया - मेबी १००० सी आर . 
उदारीकरण में मिला पेप्सी का कैन खोला दो घूट में 
खाली कर के हेलीकॉप्टर से बाहर फेक दिया .

तीन रोज़ से बाढ़ में भूखी राधा ने दौड़ उसे के कैच किया . 
माँ बोली - कुछ न मिलेगा इसमें , ये मादरजात हमेशा खाली ही 
फेकते है हमारे हिस्से . क्या करेगी तू इसका ?? 

राधा बोली माँ इस डिब्बे से टेलीफोन बनाऊगी . 
देखना उससे सरकार मेरी आवाज़ सुन लेगी . 
ऊपर उड़नखटोले में मैडम ने कहा
 - बाई द वे सिंह मौसम इस औसम हियर … 

राधा इधर आपने पेप्सी के कैन से बने 
टेलीफोन पे बोली - हैलो कोई है ??

Monday, June 17, 2013

शेल्फ मे खोजता रहा

मै उन किताबो को शेल्फ मे खोजता रहा 

और वो करती रही ज़िन्दगी में इन्तज़ार.
मैंने पूछा कहाँ थी ,कितना खोजा तुम्हे
वो बोली - और मै खोज रही थी तुम्हे
इन चार दीवारी के बाहर..
अपने बचे कोरे कागज़ो के साथ
तुम्हारे इन्तज़ार में.

Thursday, June 6, 2013

उतना ही इन्तजार

सुना है उन्हे बारिश का आज भी
उतना ही इन्तजार रहता है .
वो आसुओं से  सीली डायरी  के दागो  
को यादों से भीगा के छुपा  लेते है ..
बारिश  में खड़े हो के वो ..
मुस्कुरा के आसू बहा लेते है…
सुना है  उन्हे बारिश का आज भी

उतना ही इन्तजार रहता है .

Saturday, May 18, 2013

बिक गया छ्क्का चौआ


बिक गया छ्क्का  चौआ
खेल  की  लग गई बउआ
बिन बल्ले के कर के बैटिंग
आओ कर ले  बेटा सेटिंग
उफ ये दुनिया हाउस दैट
टूट  गया अब फेथ का बैट
हर ओवर मे  लूटो चांदी
भूल के सत्य अहिंसा गांधी
हर ओवर की सेल लगी है
डालर रुपिया रेल भगी है 
काम छोड़ कर खेल देख लो
धाम छोड़ ईमान बेच लो ..
बिक गया छ्क्का  चौआ
खेल  की  लग गई बउआ
बिन बल्ले के कर के बैटिंग
आओ कर ले  बेटा सेटिंग 

Saturday, May 11, 2013

एक लकीर खीच दो


एक लकीर खीच  दो ,

चेहरे पे  खुशियो वाली

मुस्कान नाम दिया जिसको हमने

भीड़ मे दिखती है वो अक्सर मुझे

महंगाई का हल्का सा कुछ दर्द लिए

Sunday, April 21, 2013

अब राधा को छोड़ के उपवन कुरूक्षेत्र में जाना होगा


अब राधा को छोड़ के उपवन
कुरूक्षेत्र में जाना होगा .
काट के दु:शासन के सिर को
काली सा गुर्राना होगा
नही चाहिए मुरली की धुन
ना ही भौरों की गुंज़न
एक कटार पैनी सी लेके
करना है श्वानों का मर्दन
अब राधा को छोड़ के उपवन
कुरूक्षेत्र में जाना होगा  

Tuesday, April 9, 2013

ब्रह्म नाद


अब खोल शिखा फिर
धनानंद के सर्वनाश की बारी है
अब जनेऊ की टंकार से
थर्रानी धरती सारी है ..
फिर से सुलगानी आग हमें
दहकानी फिर चिंगारी है
अब तिलक लगा के लाल तुझे
करना है मर्दन गर्दन का
फिर से गुलाम होने ना दे
माँ आज ज़ोर चित्कारी है
अब खोल तीसरा नेत्र हमें
हर  भ्रष्ट भस्म करना होगा
ब्रह्म नाद के साथ हमें
कपट विध्वंस करना होगा
भृकुटी के गांडीव चढ़ा
छल छेद छेद करना होगा
अब विष खुद ना पी कर के
उन्हे ज़हर करना होगा
रोम रोम कापेगे वो
जननी फिर हुकारी है
अब खोल शिखा फिर
धनानंद के सर्वनाश की बारी है
अब जनेऊ की टंकार से
थर्रानी धरती सारी है .. 

Sunday, April 7, 2013

नीम का एक पेड़ था


नीम का एक पेड़ था
मेरे घर के सामने..
मैं सोचता था अक्सर कि
ये जड़े अपनी तोड़ कर
गिर पड़ेगा कुछ दिनों में
ये दरख्त अगले मोड़ पर..
पर मगर आज भी वो
कायम है पुश्ते देख कर.
और हम पड़े है यहाँ
जड़ों को अपनी छोड़ कर
पिछ्ले बरस वो आंगन मेरा
बेच दिया पिछली पुश्त ने..
और हम जीते पड़े हैं..
दो कौड़ी की किश्त में...

एक मेहमान था


ये सोचता था जानता हूं सब ,
बड़ा अनजान था.
ज्ञान के सागर में मैं तो ,
बस एक मेहमान था..

अब बड़ा हो गया हूं..


कुछ सवाल पिन कर दिए थे ,
बचपन की कॉपीयों में..
सयानेपन के इंतज़ार में..
लगता है कि अब बड़ा हो गया हूं..
पर ना जाने क्यों
अब सवाल नहीं उगते ?

डोंट लाइक राधाज़ पेज


काहे किया कान्हा दिल को मोरे हैक.
डोंट लाइक राधाज़ पेज , वो तो है फेक..
तोहरे ट्वीट पे है फालोअर हज़ार..
एक बार कमेंटिया तो स्टेट्स पे हमार.
बासुरी की धुन हो गई पाईरेट तोहार.
गोपी एड होने को समझत है प्यार.
काहे किया कान्हा दिल को मोरे हैक.
डोंट लाइक राधाज़ पेज , वो तो है फेक..

एक चुस्की तन्हाई


एक चुटकी बचपन मिल जाए
एक चुस्की तन्हाई ..
भीड़ बड़ी है इन गलियों में
गैर हुई परछाई !!

कुछ छूटे से लफ्ज़


पेंसिल के डिब्बे में निकले
कुछ छूटे से लफ्ज़
मिटा दिए थे ईरेज़र से ,
बढ़ा रहे थे नब्ज़ ..
बर्बादी थे टाइम की सारे
पोशम पा भई खेलो प्यारे
कपंट छोड़ , कपट अपनाओ...
बिन कनकौवा , पेच लड़ाओ..
कम्पटीशन के लेके कैची
भोलेपन की नाक कटाओ
छोड़ के अबे तबे अउर साले.
ओ फक ओ शिट अब अपनाओ
ईरेज़र लेके अब भईया..
इन लफ्ज़न की वाट लगाओ.
पेंसिल के डिब्बे में निकले
कुछ छूटे से लफ्ज़
मिटा दिए थे ईरेज़र से ,
बढ़ा रहे थे नब्ज़ ..

पतझड़


अब तो पत्तो ने भी खुद को सुखा कर
नये कल्लो को दे दी है जगह
क्या ये पतझड़
इंसानो को बदल पाएगा

धत्त तेरे की छोड़ के भईया


धत्त तेरे की छोड़ के भईया
ओ शिट ओ फक बोले
हैट लगा के , बड़ा जमा के
चश्मे को गागल बोले..
बीड़ी अब हो गई है लाइट
पैसे बग कहलाते है
बड़े मज़े से रोज़ सेवेरे
बेड टी खूब उड़ाते है ..
ये सन कितना अर्ली आता
डाउन मार्केट लाइफ को टाटा
जय राम – दुआ सलाम छोड़ के
सीधे गले लगाते है ..
कह के बाई स्लो लाईफ को..
लोकल में झटके खाते हैं  
धत्त तेरे की छोड़ के भईया
ओ शिट ओ फक दुहराते हैं...




Tuesday, March 26, 2013

ऐसी भी क्या हड़बड़ ..

ना होली का हुल्लड़ हैं अब
ना है भांग का कुल्लड़ ..
फिर भी हैप्पी होली कह लो
ऐसी भी क्या हड़बड़ ..
बीबीएम और फेसबुक को
छोड़ के घर से निकलो
और ज़िन्दगी के रंगो को
अब तो यारो चख लो ..
बॉस से बोलो छोड़ो बाबू
पैसा ब्लैक एण्ड व्हॉइट
रंग गुलाल लगा के भईया
हो जाओ अब टाइट
ना होली का हुल्लड़ हैं अब
ना है भांग का कुल्लड़ ..
फिर भी हैप्पी होली कह लो
ऐसी भी क्या हड़बड़ ..

Monday, March 11, 2013

दो टुन्ने से घुन.


दाल के डिब्बे में देखे ...
दो टुन्ने से घुन..
खाने मशगूल बड़े थे...
मस्त थी उनकी धुन ..
दाल दाल थी
पात ना एक भी..
दिन था पूरा
रात ना एक भी..
बोले ये इंसान अजूबे
क्यों रोटी के चक्कर में आते हैं..
क्यों नहीं ये शर्मा जी
केवल दाल से काम चलाते हैं,,
शर्मा जी गुस्सा के बोले..
दाल कहाँ से खाऊगा.
तुम से एक बार बचा भी लूं
सरदार से कैसे बचाऊंगा ??

Sunday, March 3, 2013

बचपन के ऑटो का मीटर आओ कर लें डाउन


बचपन के ऑटो का मीटर
आओ कर लें डाउन...
विलेज की भाषा में इठलाएं
छोंड के नकली टाउन...

इटरवल ले फेक वर्ल्ड से ..
खोले लाइफ़ का बस्ता ..
हटा के नूड्ल बर्गर फीके..
खाएं सौंधा खस्ता..

इंक्रीमेंट को गोली मारें
पीपरमिंट चबाएं..
फाड़ फेंक के दुनियादारी..
कर्री पतंग उड़ाए..

खोल के फेकें ब्राण्डेड जूते
तलवो को घास छुवाएं..
अमब्रेला को बंद करें
मेहनत से बदन तपाएं..

हाइजीन और अनटच भूले
माटी को थोड़ा खाएं..
गंगा के पानी में जाके
डाइविंग करके आएं..

बचपन के ऑटो का मीटर
आओ कर लें डाउन...
विलेज की भाषा में इठलाएं
छोंड के नकली टाउन...