Tuesday, April 9, 2013

ब्रह्म नाद


अब खोल शिखा फिर
धनानंद के सर्वनाश की बारी है
अब जनेऊ की टंकार से
थर्रानी धरती सारी है ..
फिर से सुलगानी आग हमें
दहकानी फिर चिंगारी है
अब तिलक लगा के लाल तुझे
करना है मर्दन गर्दन का
फिर से गुलाम होने ना दे
माँ आज ज़ोर चित्कारी है
अब खोल तीसरा नेत्र हमें
हर  भ्रष्ट भस्म करना होगा
ब्रह्म नाद के साथ हमें
कपट विध्वंस करना होगा
भृकुटी के गांडीव चढ़ा
छल छेद छेद करना होगा
अब विष खुद ना पी कर के
उन्हे ज़हर करना होगा
रोम रोम कापेगे वो
जननी फिर हुकारी है
अब खोल शिखा फिर
धनानंद के सर्वनाश की बारी है
अब जनेऊ की टंकार से
थर्रानी धरती सारी है .. 

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