नीम
का एक पेड़ था
मेरे
घर के सामने..
मैं
सोचता था अक्सर कि
ये
जड़े अपनी तोड़ कर
गिर
पड़ेगा कुछ दिनों में
ये
दरख्त अगले मोड़ पर..
पर
मगर आज भी वो
कायम
है पुश्ते देख कर.
और
हम पड़े है यहाँ
जड़ों
को अपनी छोड़ कर
पिछ्ले
बरस वो आंगन मेरा
बेच
दिया पिछली पुश्त ने..
और
हम जीते पड़े हैं..
दो
कौड़ी की किश्त में...
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