बारिश की बूंदे तो है...
पर यहाँ वो टीन की छ्त नहीं है..
जिसपे गिर के ये बूंदे
बचपन में सरगम बन जाया करती थीं..
ये गिरती हैं सीमेंट की सतह पे अब..
जो किसी को बहने नहीं देना चाहती हैं..
सोख लेती हैं सब कुछ ...
बारिश की बूंदें भी..
और मेहनत का पसीना भी..
बारिश की बूंदें तो है ..
लेकिन अब वो खुली नालियां नहीं हैं..
जिसमें ताज़ा अखबार की..
मंहगाई, भूख और बेरोज़गारी को..
मुस्कुरा के कागज़ की कश्ती में तहा के..
बहा दिया करते थे..
अब तो वो सारी नालिया बंद है..
अब ना हम कश्तीयाँ बहा सकते हैं और ना आंसू
बारिश की बूंदे तो है...
पर वो नीम का पेड़ नहीं है
जिसके नीचे दादी की काली छतरी ले
घंटो बेसुध फुहारो का मज़ा लेते थे..
सुना है वो नीम अब किसी ने पेटेंट करा लिया है...
बारिश की बूंदे तो है...
पर यहाँ वो टीन की छ्त नहीं है..
जिसपे गिर के ये बूंदे
बचपन में सरगम बन जाया करती थीं..