Saturday, October 19, 2013

अब


अब वो वतन के ख्वाब नही देखता
ना खौलता है खून में  इंकलाब
ना देता है जुल्म को कोई जवाब
हर ओर बिछे है बाज़ारो के ख्वाब
ब्रांडो के स्टीकर चिपके है लबों पें  
चमकते बोर्डो से छुपा है आफताब
अब वो वतन के ख्वाब नही देखता
ना खौलता है खून मे इंकलाब

- आकाश पान्डेय , 19 अक्टूबर 2013 

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