Saturday, June 26, 2010

अज़ान

नवाब गंज की छोटी मस्जिद के बताशे ही लाना , 
ठाकुर जी के प्रसाद के लिए. दादी ने छोटू से कहा, 
उन्ही में असली मिठास होती है,

नसीम बताशे वाला हर जन्माष्टमी को 
खास दुकान लगाता है 
जिनके रंग , झाकी मे सजने वाले खिलौनो 
से भी ज़्यादा चटक होते है . 

देखो दोपहर की अज़ान हो गयी है , 
12 बजने को आए , 
ठाकुर जी को नहलाने का वक्त हो गया है. 

बरसों बाद , सुना कहीं कोई मस्जिद टूट गई है 

छोटू लौट के आया , कुछ यादों के बताशे ले कर 
लेकिन उन बताशो का भोग लगाने वाला कोई नहीं था

ना दादी, ना ठाकुर जी और न ही बचपन

1 comment:

  1. ashok भाई क्या baat है..bhaavuk कर दिया..

    ReplyDelete