नवाबगंज थाने के पास थी
कासिम कि वो दुकान
जिसमें अण्डो के ऊपर
डोरी पर मैगज़ीने टंगी रहती थी
लोगों के लिए वो किताबे थी
लेकिन मेरे लिए हवा में
टंगी रग बिरगी कहानीयां
हर कहानी अलग थी ,
एक ख्वाब सी
एक ज़िन्दगी
लोग न जाने क्यों उसे
अण्डे वाले की दुकान कहते थे
मुझे तो वो केवल
कहानी की दुकान ही लगती थी
और आज जब दूर से पलट के देखता हू
तो पता लगता है कि
वो कहानी की दुकान नहीं थी
खुद एक कहानी थी,
लोग भले ही वहाँ से
कहानी नहीं ले जा सके
केवल अण्डे लेकर चले गए
तब भी वो कहानी के किरदार बन गए
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