हाथ में रखे
दो इलाईची दानों को रख कर ,
वो सोच रहा था कि
खाऊं या ना खाऊं ?
कहीं इनका कोई
मज़हब तो नहीं ?
मिठाई होती सिर्फ
तो खा लेता...
देने वाली बुढिया ने कहा
बेटा आशिर्वाद समझ के खा ले ,
ये सोच लेना इंसान ने छुआ है
नीली छतरी के
बटवारे करने वालों ने नहीं..
क्योकि मिठास का
कोई मज़हब नही होता..
दो इलाईची दानों को रख कर ,
वो सोच रहा था कि
खाऊं या ना खाऊं ?
कहीं इनका कोई
मज़हब तो नहीं ?
मिठाई होती सिर्फ
तो खा लेता...
देने वाली बुढिया ने कहा
बेटा आशिर्वाद समझ के खा ले ,
ये सोच लेना इंसान ने छुआ है
नीली छतरी के
बटवारे करने वालों ने नहीं..
क्योकि मिठास का
कोई मज़हब नही होता..
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