रोज
पेंसिल से कॉपी में
चील
बिलौवआ बनाता था...
ना
जाने बचपन कैसे..
अपनी
मासुमियत बचाता था..
कोई
मज़हब बोता था.
तो
कोई आरक्षण चुभाता था..
और
मैं पेड़ की छांव में
कॉमिकें
उगाता था...
दंगे
हो रहे होते ..
जब
इबादत खानों के..
उस
दौर में भी मैं..
पंतगे
उड़ाता था..
गोलीयां
ठना ठ्न करती
कत्ल
भाई चारे का..
और
मैं कंचों की गोलीयों से
अपनी
दुनिया सजाता था
रोज
पेंसिल से कॉपी में
मैं
चील बिलौवआ बनाता था...
ना
जाने बचपन में कैसे
मैं
मासुमियत बचाता था..
Beautiful it is
ReplyDeleteI loved this
Must appreciate your writing
Shukriya Tahe Dil se
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