कछ किताबें ,
जिनमें पुराने बुक मार्क लगा के
फुरसत के दिनों में..
मसरूफियत के इंतज़ार में छोड दी थी..
उन्हे पढ़ने को बेकरार हूं..
पर अफसोस..
उन्हें महसूस करने के लिए..
जो सूकूं चाहिए..
वो तो करेंसी नोटों की रद्दी के बीच दबा के..
कोई कबाड़ी खरीद ले गया..
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