बचपन में
एक टूटे शीशे का टुकड़ा
बन जाता था खिलौना
उसकी चौंध में सब
अंधे हो जाते थे...
अब शीशे के शहर में हूं
जहाँ अपने शीशे के दिल को
चका चौंध से बचाए घूमता हूं
की कहीं ये उसमें बचे
बचपन के शीशे के टुकड़े को
अंधा ना कर दें..
एक टूटे शीशे का टुकड़ा
बन जाता था खिलौना
उसकी चौंध में सब
अंधे हो जाते थे...
अब शीशे के शहर में हूं
जहाँ अपने शीशे के दिल को
चका चौंध से बचाए घूमता हूं
की कहीं ये उसमें बचे
बचपन के शीशे के टुकड़े को
अंधा ना कर दें..
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