Wednesday, February 18, 2009

माँ - आकाश पाण्डेय

दूर बैठा हूँ मैं घर से.
और माँ तुम आती हो याद..
देखा था तुमको इस दिवाली
बरसों के बाद
तुम मुझे करती हो
कितना प्यार और दुलार भी
कि आज फिर दिल चाहता है
काढ़ों मेरे बाल तुम
इक टिफ़िन को डिब्बा हो
रोटी हो अचार हो
जूते के फीते भी केवल
तुमसे ही बधने को तैयार हों
एक आठ आना दो मुझे
टॉफ़ी लेने के लिए
और कहो कि मेरे छोटू
मेले है जाना इतवार को ...

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