Tuesday, February 17, 2009

ये शहर.. अन्धा शहर - आकाश पाण्डेय

ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है
धूप हो , बरसात हो
हर पहर लाजवाब है

ये शहर.. अन्धा शहर

रस्ते रेगिस्ताँ के चला
बस दो कदम मेरे पास थे
हरियाली का मौसम आते ही
सब अनजाने खास थे

ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है

लबों पर है मिश्रिया यहाँ
और पीछे खंजर हाथ है
सच है सड़कों पर भटकता
झूठ सोने के भाव है

ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है

ज़िन्दा को है छत नहीं
मूरतों को.. गुम्बद ताज है
रोटी की कीमत आसमाँ सी..
आसमाँ रोटी को मोहताज है

ये शहर.. अन्धा शहर है
इस शहर की क्या बात है
धूप हो , बरसात हो
हर पहर लाजवाब है

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