कुछ लकीरे तकदीर की.
रोज़ लिखता हूं ,मिटाता कुछ लकीरे तकदीर की....
है कहानी और परीक्षा , इस वतन के धीर की ....
मुल्क को मुश्किल से मिलती , माटी ऐसी मादरी
और धरा पर है नही , हिन्द से धरती खरी ....
शाम सरगम , रात रिमझिम , भोर भावों से भरी,,
हर रितु में भूमि सारी , रह्ती खुशियों से हरी .
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