Thursday, May 6, 2010

आदम जगा दो यारों

आज ढ़लते सूरज की किरण से...

एक् मशाल जला लो यारो ...

जुबा पर लगी ढ़ाल को फेंक....

कलम मयान से निकालो यारो...

चढ़ा के गांडीव पर शब्दो की प्रत्यंचा...

दो टंकार और हिन्द गुंजा दो यारो...

है समय अब शायरी के शंखनाद का ,....

लेके बागडोर वतन की ,

आदम जगा दो यारों..

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